यह जो क्रम है
कहने का
सुनने का
इसकी जो एक कड़ी है
अदृश्य, सूक्ष्म, रसमय
आज इसे छूने के प्रयास में
सहसा
खिलखिला उठा मैं
२
यह जो अभिव्यक्ति है
जिसकी है
जिससे है
उसे क्या आवश्यकता है
इस तरह प्रकट होने की
मेरे द्वारा
पूछ कर देखा
एक शाखा से
दूसरी शाखा तक उड़ कर बैठ गयी
अपनी मस्ती में एक चिड़िया
३
कारण ढूंढते-ढूंढते
कार्य-कारण से परे के अस्तित्त्व को
धीरे धीरे नकारने लगे हम
कारण और प्रभाव से परे भी
है कुछ
एक कड़ी
जो जोडती है
कार्य को कारण से
कारण को प्रभाव से
और
प्रभाव से जोड़ कर
मुक्त भी कर देती है हमें
यह एक कड़ी
नित्य मुक्त
अपने होने के गौरव में लीन
नन्ही बिटिया सी
भाग कर कभी गोद में आ बैठती है
कभी काँधे पर चढ़ कर
फुसफुसाती है
उछल कर खिलाने की जिद करती है
खेल खेल में
भूल जाता हूँ
उछालने की शक्ति भी
उसी की है
उसी से है
यह जो एक कड़ी है
मेरे पिता से मुझे
और
मुझे मेरे पुत्र से जोडती हुई
इस कड़ी को छूने के प्रयास में
कभी खिलखिलाता हूँ
और कभी
मौन हुआ
विस्तृत विस्मय में
खो जाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ जुलाई २०११
5 comments:
यह एक कड़ी
नित्य मुक्त
अपने होने के गौरव में लीन
नन्ही बिटिया सी
भाग कर कभी गोद में आ बैठती है
कभी काँधे पर चढ़ कर
फुसफुसाती है
उछल कर खिलाने की जिद करती है
मुक्त....सशक्त अभिव्यक्ति ...!
वाह! जी वाह!
इस 'विस्तृत विस्मय में' आनंद विभोर हो गया है मन.
बस मैं भी मौन हुआ खो जानेवाला हूँ,
भाव विभोर कर देने वाली छायावादी कविता , बधाई
कारण का कारण न ढूढ़ा।
आपके आनंदमयकोश का प्रकटन देख प्रफुल्लित हुआ मेरा मन|
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