क्या सचमुच
संभव है ऐसा
की
उम्र भर जमा की हुई
समझ की पूंजी
किसी एक क्षण में
विपरीत दिशा से उभर कर
चुरा ले जाए
कोई एक अदृश्य हाथ
पूंजी पहचान की
पीढी दर पीढी
सहेजते
सुरक्षित रखते
अर्थ पाते
साँसों का जिससे
वह पूंजी कैसे ले
जा सकता है कोई
देख कर भी
यकीन नहीं होता
की हमें जो दिखाई दे रहा हैं
वह यही नहीं है
वरन कुछ और हैं
अपने तक लौटने की यात्रा के लिए
इस बार फिर
जरूरत है
की हम
उसे देखें
जो दीखता नहीं है
इन बरसती बूंदों के
रिमझिम संगीत में
सुनता नहीं वह
माटी की सौंधी गंध से भी
पहुँचता नहीं है उसका परिचय
हमारे नथुनों तक
क्योंकि
एक वो कड़ी
जो हमें जोडती रही
इन सबसे
चुरा ली गयी है
और हम
चोर को चोर कहने में
अब भी संकोच करते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ जुलाई २०११
चुरा ले जाए
1 comment:
जीवन का एक नया रहस्य खुलता है और हम अज्ञानी होने लगते हैं।
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