अब
शायद अँगुलियों पर गिने जा सकते हैं
वो लोग
जिन्हें उस बरगद की छाँव सुहाती थी
जो लोग
ठंडी हवा की एक झोंके के साथ
वहां तक जा पहुँचते थे
जहाँ तक
समय भी नहीं पहुँच सकता
अब
शायद अँगुलियों का प्रयोग
गिनने के लिए करने वाले लोग
लुप्त हो चुके हैं
अंगुलियाँ 'की बोर्ड' के साथ
इतनी घुल-मिल गयी हैं
की
किसी से हाथ मिलाने पर भी
ढूँढने लगती हैं
दूसरे मनुष्य के हाथों का
वो 'की बोर्ड' जिस पर
दो चार कीज़ दबा कर
'आत्मीयता की पगडंडी' पर से गुजरे बिना
ही
संभव हो जाये मतलब साधना
अब
शायद अँगुलियों पर गिने
जा सकते हैं वो लोग
जिन्हें
बिना किसी मतलब के
किसी से मिलने, बतियाने
मुस्कुराने, खिलखिलाने
और
बिना किसी लाभ की अपेक्षा के
प्रसन्न हो जाने की पात्रता
ज्यों की त्यों बनी हुई है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ जुलाई २०११
7 comments:
अब
शायद अँगुलियों पर गिने
जा सकते हैं वो लोग
जिन्हें
बिना किसी मतलब के
किसी से मिलने, बतियाने
मुस्कुराने, खिलखिलाने
और
बिना किसी लाभ की अपेक्षा के
प्रसन्न हो जाने की पात्रता
ज्यों की त्यों बनी हुई है
सच बात है ...! ऐसे वातावरण में, कुछ लोगों के प्रयास से ही ..ईश्वर करे उन लोगों की संख्या दिनों दिन बढ़ती ही जाये ....
शुभकामनायें .
Very true. I can literally count on my fingers how many such relationships I have in my (our) life. I am blessed to have you as one of them. God is great.
निश्छल हो प्रसन्न रहने का गुण ही तो सीखना है।
अदभुत प्रस्तुति ,अशोक जी
आप तो दिल में उतर चुके हैं,
अब अँगुलियों पर कैसे गिने आपको.
'प्रसन्न हो जाने की पात्रता'
भी निराली है.जिस हृदय में प्रभु बसते हो
वहाँ बनावट का क्या काम.प्रसन्नता स्वाभाविक
ईश्वरीय गुण ही तो है.
अब शायद अँगुलियों का प्रयोग गिनने के लिए करने वाले लोग लुप्त हो चुके हैं
अंगुलियाँ 'की बोर्ड' के साथइतनी घुल-मिल गयी हैं की किसी से हाथ मिलाने पर भीढूँढने लगती हैं दूसरे मनुष्य के हाथों का वो 'की बोर्ड'
अदभुत प्रस्तुति ,अशोक जी
बहुत बढ़िया सर!
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कल 05/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत गहन अभिव्यक्ति
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