धूप आकर
ठहर गयी है
ऐसे जैसे
सुस्ताना चाहती हो
सुबह सुबह ही
थक गयी है
उजाले को हर दिन हारता देख कर
धूप के साथ आकर, उजाला
दिखा भर देता है
बदल नहीं पाता
उसे
जो गन्दला है
२
धूप इस बार
अज्ञात के आँगन से
नई सीख लेने
ठहर गयी है
दिन की यात्रा शुरू करने से पहले
पवन जानती है
उसकी सखी धूप
अपनी भूमिका के बारे में
स्पष्ट होने के बाद
फिर से इठलायेगी
पूर्णता का परिचय लेकर
इस छोर से उस छोर तक जायेगी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ जुलाई 2011
8 comments:
धूप के साथ आकर, उजाला
दिखा भर देता है
बदल नहीं पाता
उसे
जो गन्दला है
सुन्दर अभिव्यक्ति ..
सुबह का समय और धूप की अंगड़ाई।
bahut hi achhe bimb prastut kiye hain aapne . dhanywaad...
आपकी इस रहस्यवादी प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार.
उजाला आँखे खोलता है और दिखाता है
न केवल गन्दगी को वरन खूबसूरती को भी,जिसे देख कर गंदगी से मुहँ मोड़ने का दिल करता है और जिससे प्रयत्न भी हो सकता है गंदगी दूर करने का.
मेरे ब्लॉग पर आपने आकर मुझे कृतार्थ कर दिया अशोक भाई.
आपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
नयी-पुरानी हलचल
सुन्दर अभिव्यक्ति ..
फिर से इठलायेगी
पूर्णता का परिचय लेकर
इस छोर से उस छोर तक जायेगी
doop par itni achchi kavita padhkar bahut achcha laga.
पवन जानती है
उसकी सखी धूप
अपनी भूमिका के बारे में
स्पष्ट होने के बाद
फिर से इठलायेगी
पूर्णता का परिचय लेकर
इस छोर से उस छोर तक जायेगी
बहुत खूब सर!
सादर
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