जटाओं में जब
ठहर गयी थी गंगा,
मगन अपने आप में
पशुपतिनाथ
जिस मौन का
सघन केंद्र बन
अपने आप में सम्माहित
जिस परम अनुभूति से
हृदय को
सम्पूर्ण सृष्टि का
केंद्र बना कर
बैठे थे
त्रिलोकीनाथ
उस मौन की दुर्लभ डलियाँ
शब्द गंगा रूप में
अब भी
हो रही हैं
प्रवाहित
उतरती हैं
कृपा सिंचन करती
जब भी
बुलाता है
भागीरथ रूप लेकर मन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ जून २०११
2 comments:
जग घनघोर, मौन शिव बैठे।
सुन्दर,अदभुत, अनुपम चित्र.
महादेव पशुपतिनाथ को शत शत प्रणाम.
तृप्त कर रही भागीरथी हृदय को
देकर 'उस मौन की दुर्लभ डलियाँ'.
अशोक भाई,अनमोल है आपकी यह शिव समर्पित प्रस्तुति.
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