नया यानि ऐसा
जो हुआ नहीं पहले
हर दिन यूँ तो
वही कुछ होता है
जो हो चुका है पहले
सूरज का उगना
नींद से जागना
इधर उधर भागना
और
उड़ती सोचों के परों को ताकना
पर उसी कुछ के लिए
हमारी नयी प्रतिक्रिया
नया कर देती है सब कुछ
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सोच समझ कर
कोई प्रतिक्रिया ना करना भी
एक तरह की प्रतिक्रिया है
मूल प्रश्न कुछ पाने
या कुछ खोने का नहीं
हर प्रतिक्रिया में
स्वयं से जुड़ाव को
बचाए रखने का है
विजेता वो है
जो स्वयम को छोड़े बिना
प्रतिक्रिया कर पाता है
क्यूंकि वो
अपने विरोधी को
भी वैसे अपना पाता है
जैसे वो स्वयं को अपनाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ जून २०११
2 comments:
सुंदर प्रस्तुति,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
प्रतिक्रिया न करना अधिक प्रभावित कर जाता है।
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