तो कहो
क्या किया अब तक
उस सबमें से
जो किया जाना था
पूछ कर अपने आप से
देखता हूँ मन अपना
ना जाने कैसे
आनंद के प्रवाह में
बह जाते हैं
सभी उकेरे हुए संकल्प
ध्वनि एक
उसके 'होने की'
गूंजती है अनवरत
नाद यह निरंतर
उंडेलता है जो अमृत रस
इसकी अनदेखी कर
क्यूं कहीं और जाना
क्यूं कुछ और पाना
सजावट सारी
इस "अवतरित" में रमने के लिए
जहाँ जहाँ ले जाए
वहां वहां है जाना
आत्मरमण का अवकाश जुटाने
जिस जिस से मिलना हो
उस उस से मिल आना
प्रेम का प्रसाद
वितरित करने हेतु
उचित पात्र
कभी ढूंढना, कभी गढ़ना
संकल्प रहित होकर
सारे संकल्प पूरे कर देने
सहज श्रद्धा और उत्साह लेकर बढ़ना
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ जून २०१०
सुबह ६ बज कर ३० मिनट
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