अहंकार
चतुर खिलाडी की तरह
कभी पीछे से
कभी ज़मीन तोड़ कर
या
बरसात की तरह
ऊपर से टपक कर
पटखनी दे देता है हमें
और उसका सबसे
जोरदार पैंतरा तो ये है
कि
वो हमारे स्वरुप का ढोंग रच कर
अपनी गिरफ्त में ले लेता है हमें
२
अहंकार साथी है यूँ तो हमारा
बस एक घेरा डाल देता है
एक सीमा से परे
हमारे जुड़ने और जोड़ने की
क्षमता को शून्य कर देता है
३
प्यार का निश्छल प्रवाह
संभव है तभी
जब
हम अपने विस्तार का जिम्मा
अहंकार को नहीं
उसे सौंपें
जिसके खेल से संसार है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, ५ बज कर ४४ मिनट
१५ मई २०१०
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