(छायाकार - अशोक व्यास)
बात वो
जो है तुम्हारी
नहीं रुकेगी कभी
रुक सकती नहीं
क्योंकी तुम जीवन हो
और जीवन गति है
हर वो बात
जो रुक जाती है कहीं
जान लो
थी नहीं वो तुम्हारी
बस मान बैठे थे
उसे तुम अपना
सारा जीवन
परिभाषित होता है
बस इस एक बात से
के तुम अपना किसे मानते हो
२
तुम्हारी
अपना मानने की ताकत
रचती है संसार
तुम भी रचे जाते हो इससे
और
अपने आपको
रच रच बनाते
मगन हो जाते इस निर्माण कला में
भूल भी जाते हो कई बार
कि
तुम अपने निर्माता स्वयं हो
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ फरवरी २०१०
शुक्रवार, सुबह ६ बज कर ३७ मिनट
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