Thursday, December 31, 2009

आने जाने से परे


लौटने के पहले
क्या क्या सामान ले जाना है साथ

सोचते हुए ये बात

अचानक आ गया ख्याल

साथ वापिस
इन सब दिखने वाली चीजों में से
नहीं ले जा सकूंगा कुछ भी

और तो और
ये देह भी
नहीं रहेगी साथ

सोचते सोचते
करने लगा जांच
क्या क्या लेकर आया था साथ

और
कहाँ से आया था मैं
फिर यह प्रश्न भी कौंधा
आखिर हूँ कौन मैं

सवालों पर
सूरज कि पहली किरण का स्पर्श करवा कर
जब लौटा
नदी मैं डूबकी लगा कर
नंगे पांवो से
बालू मिटटी ने कहा

'लाना ले जाना कुछ नहीं
तुम हो
आने जाने से परे हमेशा

बात इतनी सी
रख लेने को याद
खेल है
चुनौतियाँ हैं

जीवन भूले हुए को
याद करने का नाम है
और
मूल को याद करने का
प्रयास ही
मुक्त कर सहज ही
उत्सवमय बना देता है
हर सांस को'

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
दिसंबर ३१, ०९ गुरु वार
सुबह ६ बज कर १० मिनट

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