इस बार
चर्चा थकान की नहीं
उत्साह की ही करने को
तत्पर और कटिबद्ध था वह
अपने आप में मगन
झूमते हुए
अंतिम पग धर
उसने जाना
उसका सारा उत्साह
प्रेम है
श्रद्धा है
जिसका उद्गम
अदि अंत रहित में है
इस तरह
अपने आप में निहित
विस्तार की चेतना लिए
वह खिलखिलाया
और फिर
मुस्कुराते हुए
उसने जाना
उसका सारा जीवन
जो इतने आनंद से परिपूर्ण है
सौगात है
एके अज्ञात की
अशोक व्यास
१ जुलाई २ ३