Friday, August 31, 2012

anant kee kavita



vah jo jeevan hai
hai vahi mrityu bhee
badal sakta hai vah
chhal sakta hai vah
bhay uskee kreeda ka
smriti jagaa kar uskee
kar deta nirbhay
ashwast

aghoshit rehta hai
ghoshit hokar bhee vah ek

jiske hone mein
nimmajjit man
aman ho jaata hai

use gaane kee aaturta
jab chhalchhalaatee hai
saanson mein anant kee kavita
utar aatee hai


Ashok Vyas
New York
(Panktiyan Rakeshji ke saath
email samvaad mein aaeen
aap sabke saath baantne kee prerna ho gayee
jyon kee tyon dhar deene chadariya- mangal kaamnaon sahit)
31 Aug 2012 
New York

Saturday, August 25, 2012

घोषणा अपने परिचय की

(फोटो- अनिल पुरोहित, जोधपुर )


1

कहाँ से आती है 
यह सघन उदासीनता सी,

पके फल की तरह 
सारे सन्दर्भों से 
अलग होने की अकुलाहट 

अपने उस  परिचय को 
घोषित कर देने की अधीरता 
जो 
पार है हर परिधि के 

2

और फिर यह संशय सा भी 
ठहरा है  देहरी पर 
की 
बोध इस परिचय का 
बदल न जाए 
घोषणा के बाद 

3

सत्य 
यूं तो मुझे नित्य निडर बनाता है 
पर 
सत्य से विलग होने का भय 
न जाने कहाँ से आता है 

4

लो 
अनाव्रत  होकर 
शब्द नदी में करते हुए स्नान 
कर लिया 
रोम-रोम में 
अनंत का आव्हान 

घोषणा अपने परिचय की नहीं 
बस उसकी महिमा की 
कण कण में मुखरित है 
जिसके सृजन- वैभव का गान 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
25 अगस्त 2012





Monday, August 13, 2012

पचास बरसों में ये मिला सार




ना भूलूँ, निराधार का आधार
 हर सांस का श्रद्धायुक्त सत्कार 
ईश्वर और गुरुदेव सहित माता-पिता 
बुजुर्गों, बंधू-बांधवों का आभार 

पचास बरसों में ये मिला सार 
प्यार बिना सब कुछ निस्सार 
शाश्वत संपर्क की सजगता बिना 
सूख सकती है ये पावन रसधार 

जीवन यानि गति और विस्तार
जीते वो हैं, जो होते हैं उदार 
और मैं के मूल में जाए बिना 
हो नहीं सकते क्षुद्रता की पार 

पचास बरस- 
कृपा की स्वर्णिम झंकार 
प्रार्थना यही, 
हों सारे कर्म तुम्हारे संकल्प अनुसार 
छुडा दो ओ केशव-
काम-क्रोध-मद-लोभ-दंभ से 
कर दो,
 जीवन के उत्तरार्ध में पावन परिष्कार 

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वह कहने, जो कहा नहीं जाता 
मुख से निकला, ओ अविनाशी विधाता 
बनाओ हमारे जीवन को, आनंद और प्यार की 
रसमय, चिन्मय, मंगल गाथा 

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धन्यवाद और आभार के साथ 
जन्मदिवस पर कहनी है यह बात 
हमारे हर सांस है जिसकी सौगात 
एक उसकी बात से, बन जाती हर बात 

जिसके बनाए, होते हैं दिन और रात 
हम सुनें-सुनाएँ, नित्य उसकी बात 
है हम सबके जन्म-मरण का मूल जो 
करता हूँ, उसका स्मरण, आप सबके साथ 

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बस यही है केक, रसगुल्ला और मावे की कचौरी 
रसमय ढंग से देखें, उसके हाथ बंधी हमारी डोरी 

अपने जन्म दिवस पर, 
अपने साथ-साथ 
आपके लिए भी 
उसकी कृपा का आव्हान 
सुख-संतोष। 
शांति- सम्रद्धि  और 
समन्वय हेतु 
प्रार्थना युक्त मंगल गान 

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आत्म-दरस करवाने वाले की जय जयकार 
ओ चिर्मुक्त, तुम्हारी करूणा अपरम्पार 
पारसमणि है स्पर्श गुरु सुमिरन का 
जो तजे प्रमाद, करे वह आत्म-उद्धार 

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पाकर परमसुख और शांति का 'गोल'
बजा रहा जन्मदिवस पर ढोल 
मधुर मौन में मुखरित है बोल 
आत्म-वैभव देता है तृप्ति अनमोल 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क , अमेरिका 
सोम्वार, 13 अगस्त 2012






सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...