ऐसा क्यूं है
नए दिन के साथ
होता है मन भी
नयी सलेट सा
नयेपन के साथ
लाता है एक चुनौती भी
लिखो मुझ पर कुछ
बताओ कौन हो तुम
कहो, क्या जोड़ने वाले हो तुम आज
सुनाओ, कौन सी कथा की कड़ी हो तुम
नयापन हँसते हँसते
मुझे पारदर्शी बना कर
नए सिरे से करता है जांच मेरी
कितना दुःख कितना सुख है मुझमे
कितनी निष्ठा है सत्य के प्रति
और
ये भी कि
क्या मेरा होना 'अंतिम सत्य' की पहचान से
अनुनादित है
नयापन नए दिन का
कोमल, शांत आलोकित भाव
मेरी हथेली में रख कर
कहता है
अपनी हथेली की रेखाओं से
चुन चुन कर सृजनशीलता
गढ़ो कुछ नया आज
बनो वह
जो बनना चाहते हो
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर ३५ मिनट
रविवार, अप्रैल ४, 2010
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